31.8.09

सेहत के लिए फायदेमंद है रोजा


अल्लाह तबारक व तआला क़ुरआन शरीफ़ के पारा नम्बर दो सूरह बकर की आयत नम्बर 182-183 में इर्शाद फ़रमाता है कि ” ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए जैसे कि अगली उम्मत पर फ़र्ज़ किए गए थे ताकि तुम मुत्तक़ी और परहेज़गार बन सको “। आसमानी किताब क़ुरआन पाक की इस आयत के तर्जुमे से अगर सबक़ हासिल करें और देखें तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी इस बात से क़तई इन्कार नहीं किया कि सेहत और तन्दुरुस्ती के लिए भी तक़वा व परहेज़गारी बहुत ही ज़रुरी है। हमें सेहतमन्द और तन्दुरुस्त रहने के लिए समय पर खाना-पीना, सोना और मेहनत करना ज़रुरी है जिसे एक रोज़ादार बख़ूबी अन्जाम देकर बीमारियों से बचता है। समय पर खाने-पीने से रोज़ादार का हाज़मा दुरुस्त रहता है। इसलिए रोज़ादार को क़ब्ज़, बदहज़मी और गैस जैसी हाजमे संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं। आधुनिक रोज़ा चिकित्सा विज्ञान के जन्मदाता अमेरिकन विद्वान ड़ाक्टर ड़यूई ने टाइफा़इड़ के एक रोगी को ज़बरदस्ती दूध पिलाना शुरु किया लेकिन मरीज़ दूध पीते ही उल्टी कर देता था। तरह-तरह की दवाओं से रोगी का हाजमे का निजाम ठीक करने की कोशिश की गई लेकिन सारी कोशिशें नाकाम रहीं। थक-हार कर ड़ाक्टर ने मरीज़ को खिलाना-पिलाना बन्द करवा दिया जैसा कि रोज़ा के दौरान होता है। इस तरीक़े को अपनाने से मरीज़ धीरे-धीरे सेहतमन्द और तन्दुरुस्त हो गया। ‘‘फिजिकल कल्चर’’ में ड़ाक्टर एनीरिले हैल ने लिखा है कि फ़ेफ़ड़ों की टीबी के लिए मरीज़ को बीस-पच्चीस दीन रोज़े रखवाकर जांच की जाए तो टीबी के बैक्टीरिया ( जीवाणु ) पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। रोज़ाना ज़्यादा खाने से पाचन क्रिया के अंगों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जबकि रोज़े के दौरान इन्हें आराम मिलता है जिससे पेप्टिक अल्सर जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

23.8.09

नमाज में हैं तन्दुरुस्ती के राज

 
पॉँच वक्त की नमाज और तरावीह अदा करने से मानसिक सुकून हासिल होता है। तनाव दूर होता है और व्यक्ति ऊर्जस्वित महसूस करता है। आत्मविश्वास और याददाश्त में बढ़ोतरी होती है। नमाज में कुरआन पाक के दोहराने से याददाश्त मजबूत होती है।
मोमिन अल्लाह के हर फरमान को अपनी ड्यूटी समझ उसकी पालना करता है। उसका तो यही भरोसा होता है कि अल्लाह के हर फरमान में ही उसके लिए दुनिया और आखिरत की भलाई छिपी है,चाहे यह भलाई उसके समझ में आए या नहीं। यही सोच एक मोमिन लगा रहता है अल्लाह की हिदायत के मुताबिक जिंदगी गुजारने में। समय-समय पर हुए विभिन्न शोधों और अध्ययनों ने इस्लामिक जिंदगी में छिपे फायदों को उजागर किया है। नमाज को ही लीजिए। साइंसदानों ने साबित कर दिया है कि नमाज में सेहत संबंधी कई फायदे छिपे हुए हैं। नमाज अदा करने से सेहत से जुड़े अनेक लाभ हासिल होते हैं।
रमजान के दौरान पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज तरावीह भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। नमाज से हमारे शरीर की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है। कुछ मांसपेशियां लंबाई में खिंचती है जिससे दूसरी मांसपेशियों पर दबाव बनता है। इस प्रकार मांसपेशियों को ऊर्जा हासिल होती है।

15.8.09

क्या कोरी बकवास है इसलाम का परलोकवाद !

कुछ लोग इस बात पर आश्चर्य करते हैं कि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी सोच वैज्ञानिक और तार्किक हो वह परलोकवाद को किस तरह स्वीकार कर सकता है। लोग समझते हैं कि परलोकवाद में विश्वास करने वाले अंधविश्वास से ग्रस्त होते हैं। वास्तविकता यह है कि परलोक धारणा एक तर्कसंगत धारणा है।
परलोक की धारणा के तार्किक आधार
पवित्र कुरआन में एक हजार से अधिक ऐसी आयतें हैं जिनमें वैज्ञानिक तथ्यों को बयान किया गया है। (देखिये पुस्तक Quran and Modern Science Compatible Or Incompatible) इन तथ्यों में वे तथ्य भी शामिल हैं जिनका पता पिछली कुछ शताब्दियों में चला है बल्कि वास्तविकता यह है कि विज्ञान अब तक इस स्तर तक नहीं पहुँच सका है कि वह कुरआन की हर बात को सिद्ध कर सके। मान लीजिए कि पवित्र कुरआन में उल्लेखित तथ्यों का 80 प्रतिशत भाग विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है तो बाकी 20 प्रतिशत के बारे में भी सही कहने की बात यह होगी कि विज्ञान उनके संबंध में कोई निर्णायक बात कहने में असमर्थ है। क्योंकि वह अभी अपनी उन्नति के उस स्तर तक नहीं पहुँचा है कि वह पवित्र कुरआन के बयानों की पुष्टि या उनका इंकार कर सके।

11.8.09

क्यों हराम है सुअर का गोश्त

 जानिए इस्लाम में इसका मांस खाना क्यों हराम है और सुअर का मांस खाने से कितनी बीमारियां होती हैं।
सूअर के मांस का कुरआन में निषेध कुरआन में कम से कम चार जगहों पर सूअर के मांस के प्रयोग को हराम और निषेध ठहराया गया है। देखें पवित्र कुरआन 2:173, 5:3, 6:145 और 16:115 पवित्र कुरआन की निम्र आयत इस बात को स्पष्ट करने के लिए काफी है कि सूअर का मांस क्यों हराम किया गया है: ''तुम्हारे लिए (खाना) हराम (निषेध) किया गया मुर्दार, खून, सूअर का मांस और वह जानवर जिस पर अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो।ÓÓ (कुरआन, 5:3) 2. बाइबल में सूअर के मांस का निषेध ईसाइयों को यह बात उनके धार्मिक ग्रंथ के हवाले से समझाई जा सकती है कि सूअर का मांस हराम है। बाइबल में सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख लैव्य व्यवस्था(Book of Leviticus) में हुआ है : ''सूअर जो चिरे अर्थात फटे खुर का होता है, परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है।ÓÓ '' इनके मांस में से कुछ न खाना और उनकी लोथ को छूना भी नहीं, ये तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं।ÓÓ (लैव्य व्यवस्था, 11/7-8) इसी प्रकार बाइबल के व्यवस्था विवरण (Book of Deuteronomy) में भी सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख है : ''फिर सूअर जो चिरे खुर का होता है, परंतु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना और न इनकी लोथ छूना।ÓÓ (व्यवस्था विवरण, 14/8) 3। सूअर का मांस बहुत से रोगों का कारण है ईसाइयों के अलावा जो अन्य गैर-मुस्लिम या नास्तिक लोग हैं वे सूअर के मांस के हराम होने के संबंध में बुद्धि, तर्क और विज्ञान के हवालों ही से संतुष्ट हो सकते हैं। सूअर के मंास से कम से कम सत्तर विभिन्न रोग जन्म लेते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर में विभिन्न प्रकार के कीड़े (Helminthes) हो सकते हैं, जैसे गोलाकार कीड़े, नुकीले कीड़े, फीता कृमि आदि। सबसे ज्य़ादा घातक कीड़ा Taenia Solium है जिसे आम लोग Tapworm (फीताकार कीड़े) कहते हैं। यह कीड़ा बहुत लंबा होता है और आँतों में रहता है। इसके अंडे खून में जाकर शरीर के लगभग सभी अंगों में पहँुच जाते हैं। अगर यह कीड़ा दिमाग में चला जाता है तो इंसान की स्मरणशक्ति समाप्त हो जाती है। अगर वह दिल में चला जाता है तो हृदय गति रुक जाने का कारण बनता है। अगर यह कीड़ा आँखों में पहँुच जाता है तो इंसान की देखने की क्षमता समाप्त कर देता है।

9.8.09

हर एक को मिलेगा अपने किए का फल


अल्लाह तआला और हमारे बीच का जो रिश्ता है वो हमेशा क़ायम रहने वाला है। ये रिश्ता हमारे इस दुनिया में आने से पहले भी था, हम इस दुनिया में जब तक रहेंगे तब तक रहेगा और इस दुनिया से वापस जाने के बाद भी जब तक अल्लाह तआला हमारी रूह को क़ायम रखेगा तब तक रहेगा। आज इस दुनिया में जितने भी इन्सान हैं अगर उन सभी को इस दुनिया से हटा दिया जाये तब भी ये रिश्ता क़ायम रहता है, यानी इस रिश्ते पर इस बात का कोई फर्क़ नहीं पड़ता है कि हम इस दुनिया में अकेले हैं या हमारे साथ और भी बहुत से लोग मौजूद हैं। इसी रिश्ते के मुताबिक़ हम अल्लाह तआला के बन्दे हैं। बन्दा होने की वजह से अपने रब के प्रति हमारे कुछ फ़र्ज़ हैं। सवाल ये है कि हम इस फ़र्ज़ को कितना पूरा करते हैं? इसका हिसाब हमारे इस दुनिया से वापस जाने के बाद आख़िरत में होगा। इसलिए बन्दा होने के फ़र्ज़ को पूरा करने का या ना करने का जितना ताल्लुक़ इस दुनिया से है उससे कहीं ज़्यादा ताल्लुक़ आखि़रत से है क्योंकि दुनिया का फ़ायदा या नुक़सान सिर्फ़ उस वक्त तक है जब तक हम इस दुनिया में हैं लेकिन आख़िरत का फ़ायदा या नुक़सान हमेशा का है। और बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं है, बल्कि दुनिया के मुक़ाबले आख़िरत का फ़ायदा भी बड़ा है और नुक़सान भी। अगर हम इस फ़र्ज़ को पूरा करते हैं यानी नेक अमल करते हैं तो दुनिया और आख़िरत दोनों में हमसे भलाइयों का वादा किया गया है लेकिन हम देखते हैं कि इस दुनिया में नेक काम का बदला कभी-कभी नेक नहीं मिलता है।