22.12.12

इस्लाम सच्चाई और समानता की शिक्षा देता है-भीमराव अम्बेडकर

‘‘...इस्लाम धर्म सम्पूर्ण एवं सार्वभौमिक धर्म है जो कि अपने सभी अनुयायियों से समानता का व्यवहार करता है (अर्थात् उनको समान समझता है)। यही कारण है कि सात करोड़ अछूत हिन्दू धर्म को छोड़ने के लिए सोच रहे हैं और यही कारण था कि गाँधी जी के पुत्र (हरिलाल) ने भी इस्लाम धर्म ग्रहण किया था। यह तलवार नहीं थी कि इस्लाम धर्म का इतना प्रभाव हुआ बल्कि वास्तव में यह थी सच्चाई और समानता जिसकी इस्लाम शिक्षा देता है...।’’
                                  डॉ॰ बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर (बैरिस्टर, अध्यक्ष-संविधान निर्मात्री सभा)
                                                      (‘द स्पोक अम्बेडकर’ चौथा खंड—भगवान दास, पृष्ठ 144-145 से उद्धृत)
                                   

7.12.12

इस्लाम के विरुद्ध जितना दुष्प्रचार हुआ, वह उतना ही फैला - राजेन्द्र नारायण लाल

‘‘...संसार के सब धर्मों में इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि इसके विरुद्ध जितना दुष्प्रचार  हुआ किसी अन्य धर्म के विरुद्ध नहीं हुआ । सबसे पहले तो महाईशदूत मुहम्मद साहब की जाति कु़रैश ही ने इस्लाम का विरोध किया और अन्य कई साधनों के साथ दुष्प्रचार  और अत्याचार का साधन अपनाया। यह भी इस्लाम की एक विशेषता ही है कि उसके विरुद्ध जितना दुष्प्रचार  हुआ वह उतना ही फैलता और उन्नति करता गया तथा यह भी प्रमाण है—इस्लाम के ईश्वरीय सत्य-धर्म होने का। इस्लाम के विरुद्ध जितने दुष्प्रचार  किए गए हैं और किए जाते हैं उनमें सबसे उग्र यह है कि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला, यदि ऐसा ही  है तो संसार में अनेक धर्मों के होते हुए इस्लाम चमत्कारी रूप से संसार में कैसे फैल गया? इस प्रश्न या शंका का संक्षिप्त उत्तर तो यह है कि जिस काल में इस्लाम का उदय हुआ उन धर्मों के आचरणहीन अनुयायियों ने धर्म को भी भ्रष्ट कर दिया था। अतः मानव कल्याण हेतु ईश्वर की इच्छा द्वारा इस्लाम सफल हुआ और संसार में फैला, इसका साक्षी इतिहास है...।’’

19.10.12

गांधी जी का इस्लाम के बारे में नजरिया

‘‘ इस्लाम अपने अति विशाल युग में भी अनुदार नही था, बल्कि सारा संसार उसकी प्रशंसा कर रहा था। उस समय, जबकि पश्चिमी दुनिया अन्धकारमय थी, पूर्व क्षितिज का एक उज्जवल सितारा चमका, जिससे विकल संसार को प्रकाश और शान्ति प्राप्त हु। इस्लाम झूठा मजहब नही हैं। हिन्दुओं को भी इसका उसी तरह अध्ययन करना चाहिए, जिस तरह मैने किया हैं। फिर वे भी मेरे ही समान इससे प्रेम करने लगेंगे।
मै पैगम्बरे-इस्लाम की जीवनी का अध्ययन कर रहा था। जब मैने किताब का दूसरा भाग भी खत्म कर लिया, तो मुझे दुख हुआ कि  इस महान प्रतिभाशाली जीवन का अध्ययन करने के लिए अब मेरे पास कोई  और किताब बाकी नही। अब मुझे पहले से भी ज्यादा विश्वास हो गया हैं कि यह तलवार की शक्ति न थी, जिसने इस्लाम के लिए विश्व क्षेत्र में विजय प्राप्त की, बल्कि यह इस्लाम के पैगम्बर का अत्यन्त सादा जीवन, आपकी नि:स्वार्थता, प्रतिज्ञा-पालन और निर्भयता थी। यह आपका अपने मित्रों और अनुयायियों से प्रेम करना और श्वर पर भरोसा रखना था। यह तलवार की शक्ति नही थी, बल्कि वे विशेषताए और गुण थें, जिनसे सारी बाधाए दूर हो ग और आप (सल्ल0) ने समस्त कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर ली।

30.9.12

इस्लाम में पड़ोसी के अधिकार


हजरत मुहम्मद सल्ल. ने पड़ोसियों की खोज खबर लेने की बड़ी ताकीद की है और इस बात पर बहुत बल दिया है कि कोई मुसलमान अपने पड़ोसी के कष्ट और दुख से बेखबर ना रहे। एक अवसर पर आपने फरमाया-' वह मोमिन नहीं जो खुद पेट भर खाकर सोए और उसकी बगल में उसका पड़ोसी भृूखा रहे।'
इस्लाम में पड़ोसी के साथ अच्छे व्यवहार पर बड़ा बल दिया गया है। परंतु इसका  उद्देश्य यह नहीं है कि पड़ोसी की सहायता करने से  पड़ोसी भी समय पर काम आए,  अपितु इसे एक मानवीय कत्र्तव्य ठहराया गया है। इसे आवश्यक करार दिया गया है और यह  कत्र्तव्य पड़ोसी ही तक सीमित नहीं है बल्कि किसी साधारण मनुष्य से भी असम्मानजनक व्यवहार न करने की ताकीद की गई है।
पवित्र कुरआन में लिखा है-'और लोगों से बेरुखी न कर।' (कुरआन, ३१:१८)          
पड़ोसी के साथ अच्छे व्यवहार का विशेष रूप से आदेश है। न केवल निकटतम पड़ोसी के साथ, बल्कि दूर वाले पड़ोसी के साथ भी अच्छे व्यवहार की ताकीद आई है। सुनिए-
 ' और अच्छा व्यवहार करते रहो माता-पिता के साथ, सगे संबंधियों के साथ, अबलाओं के साथ, दीन-दुखियों के साथ, निकटतम और दूर के पड़ोसियों के साथ भी।         (कुरआन, ४:३६)
पड़ोसियों के साथ अच्छे व्यवहार के कई कारण हैं- एक विशेष बात यह है कि मनुष्य को हानि पहुंचने की आशंका भी उसी व्यक्ति से अधिक होती है जो निकट हो। इसलिए उसके संबंध को सुदृढ और अच्छा बनाना एक महत्वपूर्ण धार्मिक कत्र्तव्य है ताकि पड़ोसी सुख और प्रसन्नता का साधन हो न कि दुख और कष्ट का कारण।

29.9.12

दिलों को इत्मीनान

विश्व हदय दिवस के  मौके पर पेश है इस्लाम में दिल संबंधी दी गई कुछ हिदायतें-
अल्लाह का डर रखो। निसन्देह अल्लाह दिलों तक की बातें जानता है। कुरआन ५:७
जिसे अल्लाह सीधे रास्ते पर लाना चाहता है,उसका दिल ईश्वरीय आदेशों के लिए खोल देता है और जिसे पथभ्रष्ट करना चाहता है,उसके दिल को तंग कर देता है। कुरआन-६:१२५
ताकि जो लोग परलोक को नहीं मानते,उनके दिल शैतान की ओर झुके और वे उसे पसंद कर लें और जो कमाई उन्हें करनी है कर लें। कुरआन-६:११३

लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से नसीहत आ चुकी है,और दिलों की बीमारियों की दवा और आस्था रखने वालों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता। कुरआन-१०:५७
अल्लाह जानता है जो कुछ तुम लोगों के दिलों में है और अल्लाह जानने वाला और सहनशील है। कुरआन-३३:५१
अल्लाह ही है जिसने ईमान वालों के दिलों को सुकून पहुंचाया ताकि उनका ईमान और बढ़ जाए। कुरआन-४८:४

जो दिलवाला है या कान लगाकर दिल से सुनता है, उसके लिए इन बातों में शिक्षा है। कुरआन-५०:३७

20.9.12

खतना नहीं खतरनाक, बचाता है खतरनाक बीमारियों से

 अमरीका के शिकागो स्थित बालरोग पर शोध करने वाली संस्था 'द अमरीकन एकेडेमी ऑफ पीडीऐट्रिक्स ने अपने ताजा बयान में कहा है कि नवजात बच्चों में किए जाने वाले खतना या सुन्नत के सेहत के लिहाज से बड़े फायदे हैं। सच भी है कि समय-समय पर दुनियाभर में हुए शोधों ने यह साबित किया है कि खतना इंसान की कई बड़ी बीमारियों से हिफाजत करता है। खतना एक शारीरिक शल्यक्रिया है जिसमें आमतौर पर मुसलमान नवजात बच्चों के लिंग के ऊपर की चमड़ी काटकर अलग की जाती है।
इस समय खतना (सुन्नत) यूरोपीय देशों में बहस का विषय बना हुआ है। खतने को लेकर पूरी दुनिया में एक जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। इस पर विवाद तब शुरू हुआ जब जर्मनी के कोलोन शहर की जिला अदालत ने अपने एक फैसले में कहा कि शिशुओं का खतना करना उनके शरीर को कष्टकारी नुकसान पहुंचाने के बराबर है। फैसले का जबर्दस्त विरोध हुआ। इस मुद्दे का अहम पहलू है हाल ही आया अमरीका के शिकागो स्थित बालरोग पर शोध करने वाली संस्था 'द अमरीकन एकेडेमी ऑफ पीडीऐट्रिक्स' का ताजा बयान। अमरीका के शिकागो स्थित बालरोग पर शोध करने वाली संस्था 'द अमरीकन एकेडेमी ऑफ पीडीऐट्रिक्स ने अपने ताजा बयान में कहा है कि नवजात बच्चों में किए जाने वाले खतना या सुन्नत के सेहत के लिहाज से बड़े फायदे हैं। सच भी है कि समय-समय पर दुनियाभर में हुए शोधों ने यह साबित किया है कि खतना इंसान की कई बड़ी बीमारियों से हिफाजत करता है। खतना एक शारीरिक शल्यक्रिया है जिसमें आमतौर पर मुसलमान नवजात बच्चों के लिंग के ऊपर की चमड़ी काटकर अलग की जाती है।

2.8.12

ईसाई पादरी अपना रहे हैं इस्लाम

  • शायद आप यकीन ना करें लेकिन हकीकत यही है कि इस्लाम की गोद में आने वाले लोगों में एक बड़ी तादाद ईसाई  पादरियों की है। यह किताब इसी सच्चाई को आपके सामने पेश करती है। यह ईसाई किसी एक मुल्क या इलाके  विशेष के नहीं है, बल्कि दुनिया के कई देशों के हैं। अंगे्रजी की इस किताब में 18 ईसाई पादरियों का जिक्र हैं जिन्होंने सच्चे दिल से इस्लाम की सच्चाई को कुबूल किया और ईसाईयत को छोड़कर इस्लाम को गले लगा लिया। 
इस किताब में इनके वे इंटरव्यू शामिल किए गए हैं जिसमें उन्होंने बताया कि आखिर उन्होंने इस्लाम क्यों अपनाया। उनकी नजर में इस्लाम में ऐसी क्या खूबी थी कि उन्होंने पादरी जैसे सम्मानित ओहदे का त्यागकर इस्लाम को अपना लिया।
  • पुस्तक  में शामिल ये अट्ठारह पादरी ग्यारह देशों के हैं। इनमें शामिल हैं अमेरिका के यूसुफ एस्टीज, उनके  पिता, मित्र पेटे, स्यू वेस्टन, जैसन कू्रज, राफेल नारबैज, डॉ. जेराल्ड डिक्र्स, एम. सुलैमान, कनाडा के डॉ. गैरी मिलर, ब्रिटेन के इदरीस तौफीक, ऑस्ट्रेलिया के सेल्मा ए कुक, जर्मनी के डॉ. याह्या ए.आर. लेहमान, रूस के विचैसलव पॉलोसिन, इजिप्ट के इब्राहीम खलील, स्पैन के एंसलम टोमिडा, श्रीलंका के जॉर्ज एंथोनी , तंजानिया के मार्टिन जॉन और ब्रूंडी की मुस्लिमा।
    इस्लाम अपनाने वाले ये पादरी वे हैं जिन्होंने हाल ही के दौर में इस्लाम को अपनाया। पढि़ए इस किताब को और जानिए इस्लाम की सच्चाई इन पूर्व पादरियों की जुबान से।  
  • इस किताब को यहां पेश करने का मकसद इस्लाम से जुड़ी लोगों की गलतफहमियां दूर करना और इस्लाम की सच्चाई को बताना है, मकसद किसी भी मजहब का मजाक उड़ाना नहीं है।
क्लिक कीजिए और रूबरू होइए इस किताब से
PRIESTS  ACCEPT  ISLAM
Eighteen Priests Journey From Church to Mosque