9.8.09

हर एक को मिलेगा अपने किए का फल


अल्लाह तआला और हमारे बीच का जो रिश्ता है वो हमेशा क़ायम रहने वाला है। ये रिश्ता हमारे इस दुनिया में आने से पहले भी था, हम इस दुनिया में जब तक रहेंगे तब तक रहेगा और इस दुनिया से वापस जाने के बाद भी जब तक अल्लाह तआला हमारी रूह को क़ायम रखेगा तब तक रहेगा। आज इस दुनिया में जितने भी इन्सान हैं अगर उन सभी को इस दुनिया से हटा दिया जाये तब भी ये रिश्ता क़ायम रहता है, यानी इस रिश्ते पर इस बात का कोई फर्क़ नहीं पड़ता है कि हम इस दुनिया में अकेले हैं या हमारे साथ और भी बहुत से लोग मौजूद हैं। इसी रिश्ते के मुताबिक़ हम अल्लाह तआला के बन्दे हैं। बन्दा होने की वजह से अपने रब के प्रति हमारे कुछ फ़र्ज़ हैं। सवाल ये है कि हम इस फ़र्ज़ को कितना पूरा करते हैं? इसका हिसाब हमारे इस दुनिया से वापस जाने के बाद आख़िरत में होगा। इसलिए बन्दा होने के फ़र्ज़ को पूरा करने का या ना करने का जितना ताल्लुक़ इस दुनिया से है उससे कहीं ज़्यादा ताल्लुक़ आखि़रत से है क्योंकि दुनिया का फ़ायदा या नुक़सान सिर्फ़ उस वक्त तक है जब तक हम इस दुनिया में हैं लेकिन आख़िरत का फ़ायदा या नुक़सान हमेशा का है। और बात सिर्फ़ इतनी ही नहीं है, बल्कि दुनिया के मुक़ाबले आख़िरत का फ़ायदा भी बड़ा है और नुक़सान भी। अगर हम इस फ़र्ज़ को पूरा करते हैं यानी नेक अमल करते हैं तो दुनिया और आख़िरत दोनों में हमसे भलाइयों का वादा किया गया है लेकिन हम देखते हैं कि इस दुनिया में नेक काम का बदला कभी-कभी नेक नहीं मिलता है।

मान लीजिए हम ये फै़सला करते हैं कि हम कभी रिश्वत नही लेंगे तो इस बात की कितनी उम्मीद है कि दूसरे लोग जो रिश्वत लेते हैं वो हमसे रिश्वत नहीं लेंगे, बल्कि समाज में जितने लोग रिश्वत लेने वाले होंगे और जितने लोग रिश्वत नहीं लेने वाले होंगे उसी के मुताबिक़ हम उम्मीद कर सकते हैं कि हमसे रिश्वत ली जाएगी या नहीं। इसी तरह अगर हम ये फ़ैसला करते हैं कि हम अपने लड़के की शादी में दहेज नहीं लेंगे तो इस बात की कितनी उम्मीद है कि हमें अपनी लड़की की शादी में दहेज न देना पड़े। यानी नेक अमल करने पर इस बात की कोई गारन्टी नहीं है कि उसका बदला इस दुनिया में नेक ही मिलेगा, बल्कि ये अपने साथ-साथ समाज के लोगों पर भी निर्भर करता है। लेकिन आख़िरत का मामला इससे अलग है, वहा पर नेकी का बदला नेकी ही मिलेगी।
इस दुनिया में जो भी नबी या रसूल आए वो किसी बुरे समाज को भलाई की तरफ़ मोड़ने के लिए आए। नबी या रसूल समाज के लोगों से भलाई के साथ पेश आते थे लेकिन बदले में बुराई पाते थे, क्योंकि जिस समाज में वो थे, वो समाज बुरा था। उनकी बात मानकर जो लोग ईमान लाते थे वो भी दूसरों से भलाई के साथ पेश आते थे, लेकिन उनको भी नेक कामों के बदले में नुक़सान उठाना पड़ता था, लेकिन आखि़रत में उनको वैसा ही बदला मिलेगा जैसा उन्होंने अमल किया होगा। हमारा दुनिया का बदला समाज के लोगों पर भी निर्भर करता है लेकिन आख़िरत का बदला सिर्फ़ हमारे अमल पर निर्भर करेगा। इसलिए जब हम आख़िरत के फ़ायदे को ध्यान में रखेंगे तो किसी फ़र्ज़ को पूरा करने में हमें जिस्मानी तौर पर मुश्किल तो हो सकती है लेकिन ज़ेहनी तौर पर कोई मुश्किल नहीं होगी चाहे हमें इस दुनिया में उसका नेक बदला मिले या ना मिले। आज भी कई नेक काम ऐसे है जो हमारे समाज मे कम लोग ही करते हैं, जैसे झूठ न बोलना, सच बोलना और ईमानदारी से काम करना इसलिए इन कामों को करने में हमें परेशानी होती है और कभी-कभी नुक़सान भी हो जाता है। लेकिन अगर हमारी आज की मेहनत से कल इन्हीं कामों को करने वालों की तादाद बढ़ जाए और इन कामों को करना आसान हो जाए तो क्या उस आसान वक्त में नेक कामों को करने का बदला उतना ही होगा जो आज के मुश्किल वक्त में उस काम को करने का है ? ज़रा क़ुरआन की इस आयत पर ध्यान दीजिए, ये आयत मक्का फ़तह के बाद नाज़िल हुई थीः‘‘तुममें से जिन लोगों ने फ़तह से पहले ख़र्च किया और लड़े वे एक दूसरे के बराबर नहीं हैं, वे तो दर्जे में उनसे बढ़कर हैं जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और लड़े, हालांकि अल्लाह ने प्रत्येक से अच्छा वादा किया है।’’ ;57:10
हम जानते हैं कि मुश्किल वक्त में काम आने वाला दोस्त उस दोस्त से बेहतर होता है जो आसानी मे काम आए। याद रखने वाली बात ये है कि एक ही अमल को करने का अज्र हालात के मुताबिक़ अलग-अलग होते हैं। आज आख़िरत की जो चीज़ें हमारी नज़रों से ओझल हैं वो कल ज़ाहिर हो जाएंगी। उस वक्त हमें नेक अमल की अहमियत पूरी तरह समझ में आ जाएगी। दुनिया में हमें अपनी ग़लतियों को सुधारने का मौक़ा मिल जाता है लेकिन आख़िरत की ज़िन्दगी में एक बार दाखि़ल हो जाने के बाद इस बात का मौक़ा नहीं होगा कि हम दुनिया में की हुई अपनी ग़लती को सुधारकर नुक़सान से बच सकें। मान लीजिए दो सवाल हैं, जिनका जवाब हमें देना है। शर्त ये है कि पहले सवाल का जवाब अगर एक बार ग़लत भी हो गया तो जवाब देने का एक और मौक़ा दिया जाएगा लेकिन दूसरे सवाल का जवाब देने के लिए सिर्फ़ एक मौक़ा मिलेगा, यानी जवाब ग़लत निकलने पर दूसरा मौक़ा नहीं मिलेगा। ज़रा सोचिए कि किस सवाल का जवाब देने के लिए हमें ज़्यादा सोचना पड़ेगा? दुनिया की मिसाल पहले सवाल की तरह है जिसमें कई मौक़े हैं और आखि़रत की मिसाल दूसरे सवाल की तरह है जिसके लिए सिर्फ़ एक मौक़ा है। अगर हम अल्लाह तआला से ये फ़रियाद करना चाहें कि एक मौक़ा और मिलने पर हम नेक काम करेंगे तो इसका जो जवाब हमें मिल सकता है वो क़ुरआन में पहले से ही मौजूद हैः
‘‘क्या हमने तुम्हें इतनी उम्र नहीं दी कि जिसमें कोई होश में आना चाहता तो होश में आ जाता?’’35:37
मौत का वक्त हमें पता नहीं है और पता होना भी नहीं चाहिए क्योंकि अगर हमें मौत का वक्त पता चल गया तो उस वक्त तक हम बेफ़िक्र और लापरवाह हो जाएंगे। मौत का वक्त पता न होने की वजह से हम कभी भी बेफ़िक्र और लापरवाह नहीं हो सकते क्योंकि ये लापरवाही हमें आख़िरत में बहुत भारी पड़ सकती है।

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