4.6.16

मशहूर बॉक्सर मोहम्मद अली नहीं रहे

इस्लाम में मिला दिली सुकून-मुहम्मद अली

मैंने इस्लाम का कई महीनों तक गहन अध्ययन किया और मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि इस्लाम सच्चा धर्म है, जो प्रकाशमान है।
                                 - मुहम्मद अली
दुनिया के तीन बार हैविवेट चैम्पियन रह चुके अमेरिका के मशहूर बॉक्सर
दुनिया के तीन बार हैविवेट चैम्पियन रह चुके अमेरिका के मशहूर बॉक्सर कैशियस क्ले जब इस्लाम कबूल करके मुहम्मद अली बने तो अमेरिका में मानो तूफान आ गया। मुहम्मद अली का इस्लाम में दाखिल होना अमेरिका में इस्लाम के फैलने में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इस घटना से अमेरिका में चमात्कारिक रूप से इस्लाम के आगे बढऩे में कामयाबी मिली। १७ जनवरी १९४२ को जन्मे मुहम्मद अली २२ साल की उम्र में १९६४ में इस्लाम के आगोश में आ गए।
२७ फरवरी १९६४ को मुहम्मद अली ने एसोसिएटेड प्रेस के सामने इस्लाम धर्म अपनाने का ऐलान किया। यहां पेश है उस वक्त एसोसिएटेड प्रेस के सामने मुहम्मद अली का किया गया खुलासा।मुहम्मद अली ने बताया कि आज उन्होने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है। इस्लाम वह रास्ता है जिसमें आपको हरदम सुकून व चैन मिलता है।बाईस वर्षीय क्ले ने कहा-वे ऐसे मुसलमानों को काले मुसलमान कहते हैं,दरअसल यह यहां की प्रैस का दिया हुआ शब्द है।
यह नाम उचित नहीं है। इस्लाम तो ऐसा धर्म है जिसके मानने वाले दुनियाभर में करोड़ों लोग हैं और मैं भी उनमें से एक हूंइस्लाम सच्चा धर्म
 मैंने इस्लाम का कई महीनों तक गहन अध्ययन किया और मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि इस्लाम सच्चा धर्म है जो प्रकाशमान है। जैसे एक पक्षी रात में रोशनी को देखकर चहचहाने लगता है और अंधेरे में चुप रहता है। अब मुझे भी रोशनी नजर आ गई है और मैं भी खुशी से चहचहा रहा हूं।जब मुहम्मद अली से पूछा गया कि लोग आपके धर्म परिवर्तन के बारे में जानने के बहुत इच्छुक हैं तो उनका जवाब था-लोग दूसरों के धर्म के बारे में जानना नहीं चाहते लेकिन वे मेरे धर्म के बारे में जानना चाहते हैं क्योंकि मैं चैम्पियन हूं। मैं विश्व विजेता हूं, इस वजह से पूरी दुनिया मेरे धर्म परिवर्तन को लेकर आश्चर्यचकित है।
हमारी पहचान इस्लाम से
गोरे लोग हमें काले मुस्लिम कहकर पुकारते हैं, लेकिन हमारी वास्तविक पहचान तो इस्लाम मजहब है। इस्लाम का अर्थ है शान्ति,फिर भी लोग हमें दूसरों से नफरत करने वाले समझते हैं। ऐसे लोगों का आरोप है हम देश पर कब्जा करना चाहते हैं। वे हम मुसलमानों को साम्यवादी कहते हैं। सच्चाई यह नहीं है। अल्लाह को मानने वाले लोग तो दुनिया में सबसे अच्छे इंसान हंै। वे हथियार नहीं रखते। वे दिन में पाँच बार नमाज अदा करते हैं। मुस्लिम औरतें जमीन पर लटकती हुई पोशाक पहनती हैं। वे व्यभिचार नहीं करतीं। मुसलमान दुनिया में शान्ति और चैन के साथ जिंदगी गुजारना चाहते हैं। वे किसी से नफरत नहीं करते। किसी भी तरह की मुश्किल को बढ़ावा नहीं देते। वे चुपचाप अपनी बैठकें करते हैं जिनमें किसी तरह के झगड़े और नफरत फैलाने की बात नहीं होती।
जीत अल्लाह की मदद से
मुहम्मद अली ने कहा कि इस्लाम से उन्हें दिली सुकून हासिल हुआ है और हाल ही लिस्टन पर उनकी रोमांचक जीत अल्लाह की मदद से ही हुई है। वे कहते हैं- इस मुकाबले में खुदा मेरे साथ था,बिना खुदा की मदद के मेरे लिए जीतना मुश्किल था। उन्होने कहा-वे लोग इस बात से परेशान हैं कि मुस्लिम जमाअत ने नीग्रो लोगों में आपसी एकता को जबरदस्ती से प्रज्ज्वलित किया है। मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि प्रतीकात्मक और थोपी गई एकता अस्थायी होती है और यह नीग्रो समस्या का स्थायी हल नहीं है। हमारा मानना है कि किसी को अपना मजहब दूसरे पर नहीं थोपना चाहिए। मेरे पास रोज बहुत से लोगों के टेलीफोन आते हैं। वे मुझे सिर्फ इशारा करने को कहते हैं और सुझाव देते हंै कि यह आपसी भाईचारे के लिए अच्छा होगा कि मैं किसी गौरी महिला से शादी कर लूं। लेकिन मैं किसी के कहने पर ऐसा नहीं करूंगा। मैं तो अपने ही तरह के लोगों के बीच रहना चाहता हूं और उनके साथ खुश हूं। यह फितरती बात है कि एक ही संस्कृ ति और नस्ल के लोगों को एक साथ रहना चाहिए जैसे कि जंगल के जानवर भी ग्रुप में रहते हैं। मैक्सिकन,पुइत्रो रिकन्स,चीनी और जापानी अगर एक जगह रहते हैं,तो ज्यादा अच्छी तरह रहते हैं। जैसें मै गर्म मैक्सिकन खाना पसंद नहीं करता। अगर कोई मुझे यह खाने को दे तो मुझे यह अच्छा नहीं लगेगा। इसी तरह हो सकता है आप भी वो पसंद नहीं करे जो मुझे पसंद हो।
कोई गलत काम नहीं किया
कैन्टुकी शहर से ताल्लुक रखने वाला यह युवा यह जानकर बेहद गुस्सा हुआ कि कुछ लोग उसके इस्लाम अपनाने के मामले को इस बात से जोड़कर देख रहे हैं कि मानो मैं किसी खतरनाक मकसद को अंजाम देने वाला हूं। वह क्र ोधित होकर कहता है-मैं एक अच्छा लड़का हूं। मैंने कभी कोई गलत काम नहीं किया। मैं कभी ना जेल गया ना अदालत। मैं उन गौरी औरतों की तरफ भी ध्यान नहीं देता जो मुझे आंखों के इशारे करती हैं। मैं उन लोगों पर खुद को नहीं थोपता जो मुझे पसंद नहीं करते। जहां मेरा सम्मान नहीं होता,वहां मैं बेचैनी महसूस करता हूं। मैं गौरे लोगों को पसंद करता हूं। मैं अपने लोगों को भी पसंद करता हूं। वे बिना किसी परेशानी के एक साथ रह सकते हैं। अगर कोई शान्तिप्रिय रास्ता अपनाता है तो आप उसे बुरा नहीं कह सकते,अगर फिर भी आप ऐसा करते हैं तो शान्ति का ही विरोध करते हैं।
 हज का अनूठा नजारा
यूं तो मेरी जिंदगी में कई अहम पड़ाव आए,लेकिन हज के दौरान अराफात पहाड़ पर खड़ा होना मेरी जिंदगी का महत्वपूर्ण,अद्भुत और अनूठा पल था। मैं यह देखकर अभिभूत हो गया कि वहां इकट्ठे डेढ मिलियन हजयात्री अल्लाह से अपने गुनाहों को माफ करने की गुजारिश कर रहे थे और साथ ही उसकी दया की तमन्ना कर रहे थे। मेरे लिए यह उत्साह भर देने वाला अनूठा अनुभव था। अलग-अलग रंग,जाति,देश,नस्ल,अमीर,गरीब सब सिर्फ दो चादरें पहनकर बिना किसी बड़प्पन के अल्लाह की इबादत में मशगूल थे। यह इस्लाम में बराबरी का व्यावहारिक नमूना था। जैसा १५जुलाई १९८९ का उन्होने अल मदीना, जेद्दा क ो बताया।    मोहम्मद अली का 74 साल की उम्र में 4-6-2016 को निधन हो गया।

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