25.6.14

मैं हिजाब में खुद को बेहद कम्फर्ट फील करती हूं-अलेना

उनतीस वर्षीय अलेना काटकोवा रूस के साइबेरिया की है, लेकिन वे न्यूजीलैंड में कॉल सेंटर ऑपरेटर के रूप में काम करती है। जानिए उन्हीं से आखिर क्यों अपनाया उन्होंने इस्लाम।
मेरा जन्म रूस में हुआ। रूस जहां कोई धार्मिक माहौल नहीं था। मैं सन् 2008 में न्यूजीलैंड आ गई। न्यूजीलैंड एक ऐसा मुल्क है जहां कई देशों के लोग रहते हैं,जहां विभिन्न तरह की सभ्यताएं और धर्म हैं। जब मैंने न्यूजीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलोजी में पढ़ाई शुरू की तो वहां मेरी मुलाकात कई ऐसे स्टूडेंट्स से हुई जो मुसलमान थे। मैंने उत्सुकता और जिज्ञासा से इस्लाम संबंधी उनसे कई तरह के सवाल पूछना शुरू किया। उनसे पूछे जाने वाले सवाल दर सवाल का ही नतीजा है कि मैं इस्लाम अपनाकर मुसलमान हूं। इस्लाम ने मेरी जिंदगी को बिल्कुल ही बदल कर रख दिया। इस्लाम ने मुझे ईमानदार बना दिया और खासतौर पर मेरे व्यक्तित्व में बेहतर निखार आया।  इस्लाम अपनाने से पहले मैं दोस्तों के साथ पार्टी-क्लब वगैरह में खूब जाया करती थी, लेकिन इस्लाम अपनाने के बाद मैंने यह सब छोड़ दिया है।
मुसलमान बनने के बाद जबसे मैंने इस्लामी परिधान हिजाब पहनना शुरू किया है, लोगों का मेरे साथ व्यवहार बदल गया और वे मुझे पहले के बजाय अधिक इज्जत और सम्मान देने लगे।   इस्लाम के मुताबिक हम मुस्लिम महिलाएं मर्दों से हाथ नहीं मिला सकती, ना गले मिल सकती और ना ही चुंबन ले सकती हैं, यही वजह है कि मैं इन सबसे बचती हूं। मैं किसी पुरूष से मिलती भी हूं तो कहती हूं,' आपसे मिलकर अच्छा लगा, लेकिन माफी चाहूंगी कि मेरा मजहब आपसे हाथ मिलाने की मुझे इजाजत नहीं देता है।' वे समझ जाते हैं और मुस्कराने लगते हैं । वैसे भी न्यूजीलैंड एक उदार मुल्क है। हालांकि मुझे अपने परिवार की तरफ से कुछ चुनौतियां मिली, मेरी छोटी बहिन अभी भी यह समझ नहीं पाई और ना ही स्वीकार पाई है कि मैं मुसलमान बन गई हूं।
रूस में तो लोग अभी भी मुसलमानों को आतंकवादी के रूप में ही समझते हैं। दरअसल मीडिया मुसलमानों को इसी रूप में प्रस्तुत करता है। मैं इस्लामी पहनावे हिजाब में खुद को बेहद कम्फर्ट फील करती हूं। मैं अपना जॉब बदलने की सोच रही हूं क्योंकि मैं टीचर के रूप में योग्यता रखती हूं और पहल मैं टीचर बनने की ही सोचती थी।